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उपलब्धियों से भरा पड़ा है योगी सरकार का कार्यकाल….

मनीष कुमार पाण्डेय 
यूपी में आये पंचायत चुनावों के नतीजे अप्रत्याशित हैं । इसमे कोई शक नही है कि विपक्षी दलों ने बीजेपी का अहंकार तोड़ने का काम किया है और हालात यही रहा तो 2022 में होने वाले विधान सभा चुनावों में दांतो चने चबाने पड़ सकते है ।
 
पिछले लगभग साढ़े चार सालों में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली यूपी सरकार का रवैया सिर्फ दमनकारी रहा है । अगर पिछले साढ़े चार सालों पर आप नजर डाले तो उत्तर प्रदेश में सिर्फ हिन्दू मुसलमान और मकान दुकान की खबरें मिलेंगी । 
 
पिछले साढ़े चार सालों में योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता उत्तर प्रदेश के बाहर तो बढ़ी है पर यूपी में उनके भरोसेमंद अफसरों ने इसे मिट्टी में मिला दिया है और सबसे ज्यादा बेड़ा गर्क तो उत्तर प्रदेश के सूचना विभाग ने किया है ।
 
आपको याद होगा कि पत्रकारो का जितना दमन योगी आदित्यनाथ के सरकार में हुआ है और किसी भी सरकार में इतने जुल्मों सितम किसी भी सरकार में कम से कम यूपी में नही हुए थे । अखिलेश यादव के समय मे जोगेन्द्र कांड याद आता है मुझे जिसके बाद की कोई घटना मेरे जेहन में नही है पर योगी सरकार का कार्यकाल लोक तंत्र के चौथे स्तंभ को खामोश करवाने की उपलब्धियों से भरा पड़ा है ।
 
कितने पत्रकारो की  ईओडब्लू की जाँच कराई गई कितनो के पीछे एसटीएफ लगाई गई । कितनो को जेल भेजा गया और कितनो के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई इसका ठीक ठाक आंकड़ा बता पाना मुश्किल है । लेकिन इसके पीछे कही न कही सीएम ही जिम्मेदार है क्योंकि ये सारी घटनाएं सीएम के करीबी अफसरों के निर्देशन पर हुई हैं । मुझे याद है कि जब मैं हिंदी ख़बर में बतौर रेजिन्डेन्ट एडिटर काम कर रहा था तब मैने एक ट्वीट भर कर दिया था कि ” यूपी में पत्रकारो के ऊपर सबसे ज्यादा मुकदमे इसलिए हो रहे है क्योकि यहाँ सूचना विभाग और गृह विभाग एक ही अफसर के पास है ” जिसके बाद मेरे ऊपर चैनल प्रबंधन से लेकर खुद प्रमुख सचिव सूचना का दबाव पड़ना शुरू हो गया और आखिरकार मुझे चैनल प्रबंधन के दबाव के कारण झुकना पड़ा और मुझे अपना ट्वीट डिलीट करना पड़ा ।
 
चुकी मैं एक संस्थान में काम कर रहा था इसलिए मुझे मजबूरी में ऐसा करना पड़ा सोचिये सिर्फ सच को सोशल मिडिया पर लिखना इतना कठिन है तो फिर संस्थानों में काम करने वाले पत्रकारो को सच दिखाना और लिखना कितना मुश्किल होगा । हालांकि कुछ समय बाद उन साहब से सूचना विभाग हटाकर उसकी बागडोर दुबारा उसी नवनीत सहगल के हाथों में दे दी गई जिस पर पहले भी अखिलेश और मायावती भी भरोसा जाहिर कर चुके थे लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी । वैसे अगर आज सूचना विभाग में शलभ मणि त्रिपाठी , मृत्युंजय कुमार और रईस सिंह जैसे लोगों को बतौर सलाहकार तैनात न करती योगी सरकार तो आज यूपी की मीडिया भी सरकार से बगावत कर चुकी होती ।  लेकिन इन सब के होने के बाद भी सूचना विभाग में बैठा एक ही अफसर सबपे भारी है जो इनकी सबकी मेहनत को अपनी चालों से दो मिनट में ही मिट्टी में मिला देता है ।
 
आज के लिए इतना ही। आगे की उपलब्धियां कल …….  लोगो का खेत खलिहान मकान दुकान सब सार्वजनिक किया जायेगा जो साढ़े चार सालो से मलाई काट रहे है। 
 
क्रमशः……
 
 

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