राजनीतिक लाभ के लिए सनातन विरोधी बन गए हैं कुछ दलों के नेता : मिथिलेशनंदिनी
उनका विरोध महाकुंभ के साथ 60 करोड़ लोगों की भावनाओं का तिरस्कार
गोरखपुर, 22 फरवरी। महाकुंभ को सनातन की अनादिकाल से चली आ रही परंपरा है। कुछ राजनीतिक दलों के नेता अपने राजनीतिक लाभ के लिए अनादिकाल से जारी की इस परंपरा के विरोधी बन गए हैं। सनातन का तिरस्कार राष्ट्र और महाकुंभ में आए 60 करोड़ लोगों की भावना का तिरस्कार है। ऐसा करने वालों की राजनीति के ज्यादा दिन शेष नहीं है। राजनीतिक कारणों से महाकुंभ का तिरस्कार गहरी कुंठा का प्रतीक है।
ये बातें श्रीहनुमन्निवास धाम अयोध्या के महंत आचार्य मिथिलेशनंदिनी शरण ने कही। वे शनिवार को यहां महाराणा प्रताप महाविद्यालय, जंगल धूसड़ में महाकुंभ 2025 पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में मीडिया से बातचीत कर रहे थे। उन्होंने कहा कि राजनीतिक प्रतिबद्धता के कारण महाकुंभ का तिरस्कार करने वालों के लिए आत्म समीक्षा का समय है। ऐसे लोग राजनीति पर, अपनी सीटों पर विमर्श करें तो बेहतर होगा, महाकुंभ पर विमर्श उनके सामर्थ्य का विषय नहीं है। ऐसे राजनीतिक यदि जनमत के निर्णय को मानते हैं तो उन्हें महाकुंभ के रूप में जनमत का सम्मान करना चाहिए। महाकुंभ में आने वाले व्यक्ति को किसी ने प्रेरित नहीं किया, बल्कि वह स्वतः स्फूर्त स्नान करने के लिए आए। सरकार ने उनके लिए बेहतर व्यवस्था की। इसके लिए सरकार का अभिनंदन किया जाना चाहिए। पहले भी राजनेता महाकुंभ में आते थे, स्नान करते थे पर फोटो नहीं डालते थे। आज अनुकूल परिस्थितियां हैं तो फोटो भी डाल रहे हैं।