Home / उत्तर प्रदेश / अपने 40 साल के राजनैतिक जीवन में मैंने ऐसा दिन नहीं देखा : प्रमोद तिवारी 

अपने 40 साल के राजनैतिक जीवन में मैंने ऐसा दिन नहीं देखा : प्रमोद तिवारी 

नौ हजार मीट्रिक टन ऑक्सीजन  बेंचने की इजाजत पूंजीपतियों  की तिजोरी भरने के लिये क्यों दे दी ? 

ये मौतें नहीं हत्यायें हैं

अंतिम संस्कार के लिये वाहन हेतु 10- 15 हजार रुपये अतिरिक्त चुकाने पड़ रहे हैं

 

केन्द्रीय कांग्रेस  वर्किंग कमेटी बोर्ड  के सदस्य प्रमोद तिवारी ने कहा है कि मेरे 4 दशक से अधिक के राजनैतिक एवं सामाजिक जीवन में आज ऐसा वक्त आया है कि जब कोरोना पीड़ितों के निधन के बाद उनके अंतिम संस्कार में लूट से बचाने के लिये और सूर्यास्त से पहले शीघ्र अंतिम संस्कार के लिये सिफारिश करने के अनुरोध आ रहे हैं- क्योंकि हिन्दुओं में सूर्यास्त के बाद हर जगह अंतिम संस्कार नहीं होता है ।
भारतीय जनता पार्टी सरकार यह कैसा भयावह दौर लायी है ? जब मृृतकों के परिजनों को अंतिम संस्कार के लिये वाहन हेतु 10- 15 हजार रुपये अतिरिक्त चुकाने पड़ रहे हैं । अंतिम संस्कार के लिये लकड़ी दोगुने- तीन गुने दामों में उन्हें खरीदनी पड़ रही है। नये चबूतरे बनाये जा रहे हैं उनके टेंडर हो रहे है, और अंतिम संस्कार जल्दी हो जाय इसके लिये मृृतकों के परिजन बिलख रहे हैं ।
तिवारी ने कहा है कि बाजारों में और अस्पतालों में ‘‘रेमडेसिविर’’ का इंजेक्शन  ‘‘ब्लैक’’ में बिक रहा है। कोरोना से जीवन रक्षक दवायें या तो नकली मिल रही है या फिर दोगुने- तीनगुने दामों में मिल रही है। ऑक्सीजन  के अभाव में मरीज दम तोड़ रहे हैं, कोरोना पीड़ितों के परिजनों के मिन्नते करने और गिड़गिड़ाने पर उन्हें ऑक्सीजन मिल रही है।
राजनीति से ऊपर उठकर मेरे मन में एक सवाल उठता है कि  मैं, पुछु आदरणीय प्रधानमंत्री जी से कि विश्व  स्वास्थ्य संगठन की हिदायत और यूरोप तथा अमेरिका में कोरोना की ‘‘दूसरी लहर’’ की भयावहता को देखते हुये कांग्रेस  नेताओं के बार- बार चेतावनी के बाद भी आपने 9000 (नौ हजार) मीट्रिक टन ऑक्सीजन  बेंचने की इजाजत पूंजीपतियों  की तिजोरी भरने के लिये क्यों दे दी ?
वैक्सीन एवं दवायें दूसरे देशो  को भिजवाई या फिर बांग्ला देश , पाकिस्तान एवं नेपाल सहित दुनिया के लगभग एक दर्जन देशो  को खैरात में क्यों बाँट  दी ? 14 महीने में देश  को कोरोना से बचाने के लिये देश  में चिकित्सा के संसाधन आपने क्यों नहीं तैयार किया ? जबकि यह दीवार पर लिखी हुई इबारत की तरह साफ थी कि यूरोप और अमेरिका की तरह भारत में भी कोरोना की दूसरी लहर आयेगी ।
माननीय न्यायालय ने ठीक ही कहा है कि ‘‘ये मौतें नहीं हत्यायें हैं’’ । पष्चिम बंगाल, बिहार के चुनाव इतने जरूरी थे कि लाषों के अम्बार लग जाये  उत्तर प्रदेष में पंचायत चुनाव इतने आवश्यक  थे कि शमशान घाटों पर अंतिम संस्कार के लिये ‘‘टोकन’’ लेना पड़े, कब्रिस्तान भर जायें।

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