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तिलक पर चावल, सिर्फ एक परंपरा नहीं, इसके पीछे छिपा है गहरा रहस्य…

Rice on Tilak is not just a tradition, there is a deep secret hidden behind it

Breaking Today, Digital Desk : आपने अक्सर पूजा-पाठ, त्योहारों या किसी भी शुभ काम की शुरुआत में देखा होगा कि माथे पर तिलक लगाने के बाद उस पर चावल के कुछ दाने भी चिपकाए जाते हैं। यह महज़ एक रस्म नहीं है, बल्कि इसके पीछे हमारी सदियों पुरानी परंपराओं के गहरे अर्थ और वैज्ञानिक कारण छिपे हैं। आइए, इसे सरल शब्दों में समझते हैं।

धार्मिक मान्यताएं: अक्षत का महत्व

हिंदू धर्म में चावल को “अक्षत” कहा जाता है, जिसका अर्थ है- ‘जिसका कभी क्षय न हो’ यानी जो कभी नष्ट न हो। चावल को सबसे शुद्ध अन्न माना जाता है और इसे देवी-देवताओं को अर्पित करने के लिए भी सबसे पवित्र समझा जाता है। जब हम किसी को तिलक लगाकर अक्षत लगाते हैं, तो हम प्रार्थना करते हैं कि उनके जीवन में सुख, समृद्धि और सफलता का कभी क्षय न हो।

यह भी माना जाता है कि चावल सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है। तिलक के ऊपर चावल लगाने से हमारे आसपास मौजूद नकारात्मक ऊर्जा सकारात्मक ऊर्जा में बदल जाती है। इसे देवी लक्ष्मी की कृपा और संपन्नता का प्रतीक भी माना गया है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण: मन की शांति और ऊर्जा

विज्ञान की दृष्टि से देखें तो हमारे माथे पर, दोनों भौंहों के बीच, आज्ञा चक्र होता है, जिसे ऊर्जा का केंद्र माना जाता है। जब इस स्थान पर तिलक लगाया जाता है, तो इससे मन को शांति और शीतलता मिलती है।

तिलक पर चावल चिपकाना इस प्रक्रिया को और भी प्रभावी बनाता है। चावल को सकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है। ऐसा करने से शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और आत्मविश्वास बढ़ता है। यह तिलक द्वारा प्राप्त होने वाली शांति और ऊर्जा को केंद्रित करने में मदद करता है।

संक्षेप में, तिलक के ऊपर चावल लगाना सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि अपने प्रियजनों के लिए सम्मान, शुभकामनाएं और आशीर्वाद व्यक्त करने का एक सुंदर तरीका है। यह हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है और जीवन में सकारात्मकता बनाए रखने की प्रेरणा देता है।

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