याद है मुझे ! 2009 में में लखनऊ आया था । बहुत हाथ पांव मारने के बाद मुझे के न्यूज में पहली नौकरी मिली । मतलब इसके पहले मैं अवैतनिक हुआ करता था । अभिलाष भईया ने मुझे सबसे पहला मौका दिया पर अपने जीवन का सबसे पहला नियुक्ति पत्र मुझे के न्यूज में मिला था । वैसे तो इस नियुक्ति पत्र को दिलवाने में सबसे बड़ा योगदान देवकी भइया का था क्योंकि उन्होंने मुझे के न्यूज के वैकेंसी के बारे में बताया था और मैं उनके दिशा निर्देशन में मैं इस चैनल में इंटरव्यू देने पहुचा और मनोज दुबे सर ने मुझे काम करने का मौका दिया पर फिर भी मैं उनसे बढ़कर धर्मेश सर को सम्मान देता हूं । वजह ये है कि एक मामले में मुझे उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े नौकरशाह के खिलाफ एक सबूतों के साथ ख़बर मिली । मैने उसे फाइल किया पर मनोज सर ने वो खबर रुकवा दी । कहा कि हमारा चैनल प्रदेश के सबसे ताकतवर नौकरशाह के खिलाफ ख़बर नही चला सकता हालांकि की मैंने जब ये बात धर्मेश सर को बताई तो उन्होंने तुरंत उस स्टोरी को एयर कराया । उसका नतीजा ये निकल के आया कि जिस चैनल को अखिलेश सरकार के अधिकारी गंभीरता से नही लेते थे उस चैनल को वो लोग गंभीरता से लेने लगे और उसे सी केटेगिरी से निकलकर ए कैटिगिरी में रख दिया । फिलहाल उस घटना को याद करता हूं तो गर्व से सीना चौड़ा हो जाता है कि अगर धर्मेश सर नही होते तो दुबे जी ने मेरी स्टोरी का सौदा एक सूबे के वरिष्ट पत्रकार काहे जाने वाले साहब से मिलकर कर ही डाला था ।
मुझे याद है कि मेरी एक स्टोरी को लेकर एस एस पी लखनऊ ने चैनल में फोन किया कि ये स्टोरी नही चलनी चाहिए इसके एवज में मैं आपके चैनल के लिए कुछ भी कर दूंगा पर जब स्टोरी नही चली और मैंने अपने आउट पूट एडिटर से बात की तो उन्होंने कहा कि संपादक जी ने रोक दिया है । उनके पास एस एस पी लखनऊ का फोन आया था । मैंने ये बात धर्मेश सर को बताई और उन्होंने कहा बेटा स्टोरी मैं अभी एयर करा रहा हूँ । वैसे अगर मेरे पास डीजीपी का भी फोन आता तो मैं अपने रिपोर्टर की खबर नही रोकता । ये अनुभव मुझे आज भी रोमांचित करता है । दूसरा अनुभव मेरा समाचार प्लस का रहा। उंसमे आलोक सर और प्रवीण सर की एक नही सैकड़ो घटनाएं है । मैं बोलता आलोक सर ये स्टोरी है इसमे फला अधिकारी की ऐसी तैसी हो जाएगी । उनका एक ही जवाब होता था कि रुको प्रवीण सर से बात करता हु । और हमेशा एक ही जवाब आता था । फोड़ दो खबर जो होगा देखा जाएगा । तीसरे बॉस रहे मेरे आशीष चित्रांसी उन्होंने भी मुझे कभी किसी खबर के साथ समझौता करना नही सिखाया । पर अफसोस कैरियर के इस पड़ाव में कुछ हरामखोर टाइप के लोग भी मिले जिन्होने खुलेआम मेरी बोली लगाई । ऐसे ही एक साहब आजकल अपने आप को बड़ा संपादक सम्बोधित करवाते है । कल उनकी एक पोस्ट देखी की अगर आपके अंदर काबिलियत है तो आइए सिद्ध कीजिये वी आर हायरिंग । पर मैं सच कहता हूं जो भी इन हरामखोर लोगो के चक्कर में फंसा वो या तो आत्महत्या कर लेगा या फिर पत्रकारिता छोड़ देगा ।
क्रमशः